Thursday, January 29, 2009

इस जंतु का नाम है "GirlFriend" . . . . . .

दोस्तों आज हम एक अजीबो गरीब प्राणी के बारे में पढायेंगे . . . . . . . . इस जंतु का नाम है "GirlFriend" . . . . . . ये अक्सर "Boyfriend" के साथ पाई जाती है ! इनका पोस्टिक आहार "Boyfriend" का भेजा होता है ! इनको अक्सर नाराज होने का नाटक करते हुए देखा जा सकता है ! इस प्राणी का सबसे खतरनाक हथियार रोना और इमोशनली ब्लैक मेल करना होता है ! गर्ल फ्रेंड के काटने पर टेंशन नाम की बीमारी हो जाती है, जिसका कोई इलाज नहीं है .. अतः सदैव दूरी बनाये रखे! !!!!!!!!जनहित में जारी!!!!!!!!

Friday, January 23, 2009

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.
वन्दे-मातरम के जो गाने के विरुद्ध हैं। पैदा होने वाली ऐसी नसले अशुद्ध हैं। आबरू वतन की जो आंकते हैं ख़ाक की। कैसे मान लें के वो हैं पीढ़ी अशफाक की। गीता ओ कुरान से न उनको है वास्ता। सत्ता के शिखर का वो गढ़ते हैं रास्ता। हिन्दू धर्म के ना अनुयायी इस्लाम के। बन सके हितैषी वो रहीम के ना राम के। गैरत हुज़ूर कही जाके सो गई है क्या। सत्ता माँ की वंदना से बड़ी हो गई है क्या। देश तज मजहबो के जो वशीभूत हैं। अपराधी हैं वो लोग ओछे हैं कपूत हैं। माथे पे लगा के माँ के चरणों की ख़ाक जी। चढ़ गए हैं फांसियों पे लाखो अशफाक जी। वन्दे-मातरम कुर्बानियो का ज्वार है। वन्दे-मातरम जो ना गए वो गद्दार है। 
I M WHAT I WAS  किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा
चले जाते हैं लोग  प्यार का इजहार करके क्यूँ चले जाते हैं लोग । कैसे जी पाते हैं वह हम तो लगा लेते हैं रोग ॥ चांद तारों को मैं जब भी देखता हूं साथ साथ, यार मेरा लगता लौटेगा मिटाकर अब वियोग । कैसे भूलूँ उन पलों को साथ जो हमने बिताए, रब की धरती पर मिला आशीष था कैसा सुयोग, आ गले से लग ही जाओ, चंद सांसे ही बची हैं, दो मुझे जीवन नया, अपना मिटा लो तुम भी सोग । याद तुमको गर नही हम, था जताया प्यार तुमने, जिंदगी में तुम किसी के, अब न करना यह प्रयोग । 
Us nazar ki taraf mat dekho, Jo tumhe Dekhne se Inkar Karti Hai, Duniya ki Bheed mai Us nazar ko Dekho, Jo sirf Tumhara "INTEZAAR" Karti hai  Dosti shayad zindgi hoti hai, Jo har dil mein basi hoti hai, Waise to jee lete hai sabhi akele magar, Phir bhi zarurat inki har kisi ko hoti hai..!! Tanha ho kabhi to mujko dhundna, duniya se nahi apne dil se poochna, Aas pas hi kahi base rahte hai hum, yaado se nahi saath guzare lamho se puchna..!!  Saath rehte rehte yuhi waqt guzar jayega, Door hone ke baad kaun kisse yaad aayega, Jee lo ye pal jab hum saath hain, kal ka kya pata, waqt kahan le jayega..... 

दिन हुआ है तो रात भी होगी,

दिन हुआ है तो रात भी होगी, हो मत उदास कभी तो बात भी होगी, इतने प्यार से दोस्ती की है खुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी. कोशिश कीजिए हमें याद करने की लम्हे तो अपने आप ही मिल जायेंगे तमन्ना कीजिए हमें मिलने की बहाने तो अपने आप ही मिल जायेंगे.

Wednesday, January 21, 2009

मैं नहीं जानता कौन थी वो

मैं नहीं जानता कौन थी वो क्या रिश्ता था मेरा उसका । समझ नहीं आता, जान नहीं पाता किसी भी एक रिश्ते में ढाल नही पाता । किसी दिन जब मैं उससे रुठ जाता दोस्त बन अपने कान पकड़ मनाया करती थी वो । जब मैं जीवन से निराश होता भविष्य से उदास होता मैडम बन जीवन से लड़ना सिखाती थी वो । कभी कभी आँखें बँद कर मुँह खोलने को कहती प्रेमिका बन मुँह में हरी मिर्च डाल भाग जाया करती थी वो। कभी कभी गुड्डे गुड़िया का खेल खेलने का मन करता था पत्नी बन, रख गोद में सिर मेरा, बना बालों को काले बादल, मेरे तपते चेहरे पर जम कर बरसा करती थी वो । भूख लगती थी जब मुझे जोरों से माँ बन, अपने हाथों से रोटी बना खिलाया करती थी वो । जब भी मुझे किताबें लाने के लिए पैसे की कमी पड़ जाती पिता बन टयूशन पढ़ाकर कमाये पैसों में से पैसे दिया करती थी वो । मगर दार्शनिक बन एक दिन बोली " अपना जीवन अपना नहीं दूसरों का भी होता हैं " मैं देख रहा था किसी अनहोनी को उसकी सुजी हुई लाल आँखो में । बेटी बन फिर वो बोली " मैं दूर कहाँ जा रही हूँ, यही हूँ तुम्हारे पास, जब बुलाओगे दोड़ी चली आऊँगी " मैं उसको बुला ना सका वह लौट कर आ ना सकी ।

Monday, January 19, 2009

*****डर*****

इंसान थे हम, देवता बना पूजते रहे 'वो बेखबर इस बात से कि पत्‍थरों की भी उम्र होती है टूट के बिख्‍ार जाने पर पूजने वाले पहचानते भी नहीं. *****डर***** मैं डरता हूँ अपने से अपने सपने से अपनी चाहत से अपने ख्य्लात से अपने रिश्तो से अपने अस्तित्व से अपने साथ जुडी आस्था की डोर से समाज की बेडियों से डरता हूँ माँ के आंचल की छाँव खोने से डरता हूँ बच्चो के भविष्य,आशाओं से डरता हूँ जीवन संगनी को दिए सात वचनों से डरता हूँ दोस्तों का प्यार खोने को डरता हूँ वक़्त से डरता हूँ टूटन से डरता हूँ थकान से डरता हूँ खुद से डरता हूँ खुद को खोने से डरता हूँ स्वर्णिम परिधान पहनकर नये वर्ष का है आवर्तन, रवि रश्मियाँ करती हैं आशाओं की ज्योति संचरण। धवल चांदनी खिल-खिलकर, भरती जीवन में आकर्षण, रजनीगंधा की सुगंधि भर प्रकृति करती अभिनंदन। जीवन सुखमय बन जाए क्षण-क्षण हो सुख परिपूरन, ॠध्दि-सिध्दि नित करने आएँ तव द्वार पर प्रति पल वंदन। स्वास्थ्य, समृध्दि, सफलता करें आजीवन प्रत्यावर्तन, इंद्रधनुषी स्वप्न तुम्हारे पा जाएँ संबल संकर्षण। परिवार हो सुखमय क्षण-क्षण सुख बन जाए तव जीवनधन, वाणी वीणा लेकर गाए नये वर्ष का मंगलाचरण''..

इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के पासे सभी उलट गए दुश्मन कि चाल के अक्षर सभी पलट गए भारत के भाल के मंजिल पे आया मुल्क हर बला को टाल के सदियों के बाद फ़िर उड़े बादल गुलाल के हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के देखो कहीं बरबाद न होवे ये बगीचा इसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा रक्खा है ये चिराग शहीदों ने बाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के दुनियां के दांव पेंच से रखना न वास्ता मंजिल तुम्हारी दूर है लंबा है रास्ता भटका न दे कोई तुम्हें धोके मे डाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के एटम बमों के जोर पे ऐंठी है ये दुनियां बारूद के इक ढेर पे बैठी है ये दुनियां तुम हर कदम उठाना जरा देखभाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के आराम की तुम भूल भुलय्या में न भूलो सपनों के हिंडोलों मे मगन हो के न झुलो अब वक़्त आ गया मेरे हंसते हुए फूलो उठो छलांग मार के आकाश को छु लो तुम गाड़ दो गगन मे तिरंगा उछाल के इस देश को रखना मेरे बच्चो संभाल के

कड़वा सच जिन्दगी का जिसे हम नहीं भूल सकते

कौन किसी के दिल मैं जगह देता है ' पेड़ भी सूखे पत्तो को गिरा देता है' वाकिफ है हम दुनिया के रिवाजों से जान निकल जाए तो अपना ही कोई जला देता है कड़वा सच जिन्दगी का जिसे हम नहीं भूल सकते
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ अपने प्रकाश की रेखा तम के तट पर अंकित है निःसीम नियति का लेखा देने वाले को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर पल भर सुख भी देखा फिर पल भर दुख भी देखा । किस का आलोक गगन से रवि शशि उडुगन बिखराते? किस अंधकार को लेकर काले बादल घिर आते? उस चित्रकार को अब तक मैं देख नहीं पाया हूँ, पर देखा है चित्रों को बन-बनकर मिट-मिट जाते । फिर उठना, फिर गिर पड़ना आशा है, वहीं निराशा क्या आदि-अन्त संसृति का अभिलाषा ही अभिलाषा? अज्ञात देश से आना, अज्ञात देश को जाना, अज्ञात अरे क्या इतनी है हम सब की परिभाषा ? पल-भर परिचित वन-उपवन, परिचित है जग का प्रति कन, फिर पल में वहीं अपरिचित हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन । है क्या रहस्य बनने में ? है कौन सत्य मिटने में ? मेरे प्रकाश दिखला दो मेरा भूला अपनापन । देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो, जीवन की धारा में अपने को बहने दो तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो । वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो बन कर मिट जाने की एक तुम कहानी हो । पल में रो देते हो, पल में हँस पड़ते हो, अपने में रमकर तुम अपने से लड़ते हो पर यह सब तुम करते - इस पर मुझको शक है, दर्शन, मीमांसा - यह फुरसत की बकझक है, जमने की कोशिश में रोज़ तुम उखड़ते हो । थोड़ी-सी घुटन और थोड़ी रंगीनी में, चुटकी भर मिरचे में, मुट्ठी भर चीनी में, ज़िन्दगी तुम्हारी सीमित है, इतना सच है, इससे जो कुछ ज्यादा, वह सब तो लालच है दोस्त उम्र कटने दो इस तमाशबीनी में । धोखा है प्रेम-बैर, इसको तुम मत ठानो कडु‌आ या मीठा ,रस तो है छक कर छानो, चलने का अन्त नहीं, दिशा-ज्ञान कच्चा है भ्रमने का मारग ही सीधा है, सच्चा है जब-जब थक कर उलझो, तब-तब लम्बी तानो ।

कल सहसा यह सन्देश मिला सूने-से युग के बाद मुझे कुछ रोकर, कुछ क्रोधित हो कर तुम कर लेती हो याद मुझे । गिरने की गति में मिलकर गतिमय होकर गतिहीन हुआ एकाकीपन से आया था अब सूनेपन में लीन हुआ । यह ममता का वरदान सुमुखि है अब केवल अपवाद मुझे मैं तो अपने को भूल रहा, तुम कर लेती हो याद मुझे । पुलकित सपनों का क्रय करने मैं आया अपने प्राणों से लेकर अपनी कोमलताओं को मैं टकराया पाषाणों से । मिट-मिटकर मैंने देखा है मिट जानेवाला प्यार यहाँ सुकुमार भावना को अपनी बन जाते देखा भार यहाँ । उत्तप्त मरूस्थल बना चुका विस्मृति का विषम विषाद मुझे किस आशा से छवि की प्रतिमा ! तुम कर लेती हो याद मुझे ? हँस-हँसकर कब से मसल रहा हूँ मैं अपने विश्वासों को पागल बनकर मैं फेंक रहा हूँ कब से उलटे पाँसों को । पशुता से तिल-तिल हार रहा हूँ मानवता का दाँव अरे निर्दय व्यंगों में बदल रहे मेरे ये पल अनुराग-भरे । बन गया एक अस्तित्व अमिट मिट जाने का अवसाद मुझे फिर किस अभिलाषा से रूपसि ! तुम कर लेती हो याद मुझे ? यह अपना-अपना भाग्य, मिला अभिशाप मुझे, वरदान तुम्हें जग की लघुता का ज्ञान मुझे, अपनी गुरुता का ज्ञान तुम्हें ।।

अपनी खबर हमे जरुर पहुँचाया करो ....

यार का नमस्कार , बहुत सारा पवन का प्यार जिन्दगी की बहार .. कैसे हो मेरे यार बहुत समय से कोई खबर नहीं चलो लिख भेजो अपना प्यार ... कभी कभी हमारी गली भी आया करो कभी हँसे तो कभी कभी रो भी जाया करो हमसे ना शरमाया करो अपना बनाया है तो गले भी लग जाया करो ... जिन्दगी कुछ पलो की या कितने पलो की ना मालुम पढ़ा किसी को उसे समझो समझाओ .. यारो आप पवन के पवन आप का साथी यह रोज सुबह सब को बताया करो .. जिन्दगी एक पंगा है और इस पवन रूपी पंगे बाज़ से पंगा ले जाया करो थोडा हँसो तो थोडा हंसाया करो अपनी खबर हमे जरुर पहुँचाया करो .... ...

ये मुझे मालूम न था

आप गीता है ye मुझे मालूम न tha आप का जन्मदिन आज या कल में हुआ है ये मुझे मालूम न था आप स्त्री या पुरुष है ये मुझे मालूम न था आप शादी सुदा है ये मुझे मालूम न था आप के कई चाहने वाले है ये मुझे मालूम न था ये मुझे मालूम न था कि कोई है दीवाना जो गुमता है ऑरकुट कि गलियों में स्क्रैप को कॉपी पेस्ट करता आपने सपनो को स्क्रैप में भरता आपने विचारो से लोगों में उभरता है कोई दीवाना ये मुझे मालूम न था कही है उसमे आग यौबन कि तो कही है आग उसमे रो वन की तो कही आग में जलती है वो हर रोज़ जलती है ये मुझे मालूम न था

अंधेरी कोठरी

खरीदा महंगा अर्पाटमैन्ट बहू बेटे ने महानगर में प्रमुदित थे दोनों बहुत माँ को बुलाया दूसरे बेटे के पास से गृह प्रवेश किया हवन पाठ करवाया। दिखाते हुए माँ को अपना घर बहू ने कहा-- माँजी ! आपके आशीर्वाद से संभव हुआ है यह सब इनको पढ़ा लिखा कर इस लायक बनाया आपने वरना हमारी कहाँ हैसियत होती इतना मंहगा घर लेने की माँ ने गहन निर्लिप्तता से किया फ्लैट का अवलोकन आँखों में चमक नहीं उदासी झलकी याद आये पति संभवत: याद आया कस्बे का अपना दो कमरे, रसोई, एक अंधेरी कोठरी व स्टोर वाला मकान जहाँ पाले पोसे बड़े किए चार बच्चे, रिश्तेदार, मेहमान बहू ने पूछा उत्साह से-- कैसा लगा माँजी! मकान 'अच्छा है, बहुत अच्छा है बहू ! इतनी बड़ी खुली रसोई, बैठक, कमरे ,गुसलखाने कमरों के बराबर सब कुछ तो अच्छा है पर इसमें तो है ही नहीं कोई अंधेरी कोठरी जब झिड़केगा तुम्हें मर्द, कल को, बेटा! दुखी होगा जब मन जी करेगा अकेले में रोने का तब कहाँ जाओगी, कहाँ पोंछोगी आँसू और कहाँ से बाहर निकलोगी गम भुला कर जुट जाओगी कैसे फिर हँसते हुए रोजमर्रा के काम में ।'

MERI KHAMOSHI

MERI KHAMOSHI KO KAMJORI NA SAMJHO, WAQT BATATA HAI KISKA SHIKAR KARNA HAI, RAHI BAAT AGAR SAMANDAR KO GURUR HAI APNI LEHRON PAR, TO HAME BHI "ZID" HAI SAMANDAR KO PAAR KARNA HAI.

पत्रकार

पत्रकार लोकतंत्र का इक, अभिन्न अंग है, पत्रकार। नाम कलम से, काम कलम से, है ,युग निर्माता पत्रकार। हिंसा और आतंक मिटाने की, चेष्ठा है पत्रकार। घटनाओं का आंखों देखा, लेख है, लिखता पत्रकार। जन-जन तक ख़बरें पहुंचाकर, दायित्व निभाता पत्रकार। दिखता नही सुबह का सूरज, फिर कलम पकड़ता पत्रकार। अविलम्बित ये मानव ऐसा , बेबाक टिप्पणी पत्रकार। ये भी एक विडम्बना है, आतंकित है पत्रकार। हो जाए चाहे जो कुछ भी, पर निडर व्यक्ति है पत्रकार। समय अनिश्चित, कार्य अनिश्चित, पर निश्चित है, पत्रकार। एक सिपाही बंदूको, से एक सिपाही कमलकार, लोकतंत्र का पत्रकार, ये लोकतंत्र का पत्रकार।

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Kal jab mile thhe.... to dil mein hua ek sound. Aur aaj mile to kehte hain... your FILE NOT FOUND! ------------ --------- --------- Jo muddat se hota aaya hai, woh repeat kar doonga... Tu naa mili to apni zindagi CTRL+ALT+ DEL kar doonga... ------------ --------- --------- Shayad mere pyar ko taste karna bhool gaye... Dil sey aisa CUT kiya ke PASTE karna bhool gaye.... ------------ --------- --------- Laakhon honge nigaah mein kabhi mujhe bhi SELECT karo... Mere pyaar ke ICON pe kabhi to DOUBLE CLICK kardo... ------------ --------- --------- Roz subha hum karte hain pyar se unhe good morning... Woh aise ghoor ke dekti hain jaise 5 ERRORS aur 5 WARNINGS... ------------ --------- --------- Aisa bhi nahin hai ke I don't like your face. Par dil ke storage mein No more DISK SPACE. ------------ --------- --------- Ghar se jab tum nikale pehen ke reshmi gown. Jaane kitne dilon ka ho gaya SERVER DOWN

ब्लोग कि कसम .........