Saturday, March 28, 2009

कुष्ठ और कानून

पंचायती कानून को कुष्ठ सरकार लाख दावा करे कि कुष्ठ और क्षय रोग का इलाज संभव है, लेकिन देश के क़ानून में इन बीमारियों का डर इस कदर समाया हुआ है कि आज भी टीबी और कुष्ठ रोगियों को अलग-थलग रखने के लिए पंचायत से लेकर रेलवे तक क़ानून की ऐसी-ऐसी दीवारें खड़ी कर दी गई हैं, जिनका कम से कम अभी तो कोई अंत नहीं दिखता. देश में ऐसे दर्जनों क़ानून हैं, जो इन रोगियों के साथ साफ तौर पर भेदभाव की वकालत करते हैं. हालत ये है कि कुष्ठ को ‘लाईलाज ’ बताने वाले क़ानून आज भी देश में धड़ल्ले से जारी हैं. क़ानून का भेदभाव मूक-बधिर लोगों के साथ भी बरसों से बरता जा रहा है. कानून कर रहा है भेदभाव देश के कई राज्यों में पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव में कुष्ठ रोगियों के उम्मीदवार बनने पर प्रतिबंध है. उड़ीसा में टीबी के मरीज को तो राजस्थान और कर्नाटक में मूक-बधिर पर भी यह प्रतिबंध लागू है. राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा में स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में कोई भी कुष्ठ रोगी उम्मीदवार नहीं बन सकता. उड़ीसा के पंचायती राज क़ानून में यह प्रतिबंध क्षय यानी टीबी के रोगियों पर भी लागू है. हद तो यह है कि अगर स्थानीय निकाय का कोई सदस्य या पदाधिकारी बाद में भी इनमें से किसी रोग से ग्रस्त हो जाए तो उसे अपात्र घोषित किया जा सकता है. वहीं आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में तो मूक बधिरों के साथ भी भेदभाव करते हुए उन्हें पंचायत चुनाव के लिए अपात्र माना गया है. भारत में कुष्ठ रोग का सबसे पहला मामला 600 ईसा पूर्व सामने आया था. सुश्रुत संहिता और वैदिक काल के ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. कुष्ठ को छुआछुत से फैलने वाला रोग माना जाता था, इसलिए आप तौर पर कुष्ठ रोगियों का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था. कई मामलों में तो कुष्ठ की बीमारी फैलने के डर से कुष्ठ रोगियों की हत्या भी कर दी जाती थी. 1898 में कुष्ठ अधिनियम लागू करते हुए यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि कुष्ठ रोगियों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो. लेकिन सौ सालों से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी भारतीय क़ानून और नियम-क़ायदे ही कुष्ठ रोगियों के साथ भेदभाव कर रहे हैं. मध्यप्रदेश के पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 36 (1) (एच) के अंतर्गत संक्रमण फैलाने वाले किसी भी कुष्ठ रोगी को पंचायत का सदस्य नहीं बनाया जा सकता. हालांकि छत्तीसगढ़ में भी मार्च 2008 तक यह क़ानून लागू था लेकिन महीने भर पहले इस लेखक द्वारा राज्य सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद मार्च में इस प्रावधान को खत्म करने के लिए विधानसभा में विधेयक पारित कर दिया गया. उड़ीसा नगरपालिका अधिनियम 1950 की धारा 16 (ए) (5) में यह प्रावधान रखा गया है. धारा 17 (1) (बी) में तो यहां तक कहा गया है कि अगर कोई सदस्य टीबी या कुष्ठ से संक्रमित हो जाए तो उससे उसके सारे अधिकार छीने जा सकते हैं. उड़ीसा ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 25 (1) (ई) में भी इसी तरह के प्रावधान हैं. राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 की धारा 26 (9) और राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 19 (एफ) में भी कुष्ठ रोगियों को चुनाव के लिए अपात्र माना गया है. आंध्र प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 19 (2) (बी) में तो कुष्ठ रोगियों के साथ-साथ मूक-बधिरों को भी पंचायत चुनाव से बाहर रखते हुए उनके उम्मीदवार बनने पर रोक है. कर्नाटक नगरपालिका अधिनियम 1976 की धारा 26 (1) (एफ) में भी मूक-बधिरों को नगरपालिका के लिए अपात्र घोषित किया गया है. अगर आप कुष्ठ रोगी हैं तो आपको वाहन चलाने का अधिकार नहीं है क्योंकि 1939 का मोटर यान अधिनियम किसी कुष्ठ रोगी को लाइसेंस के लिए अपात्र मानता है. दूसरी ओर भारतीय रेल क़ानून 1990 की धारा 56 (1) एवं (2) के आधार पर किसी कुष्ठ रोगी को यात्रा के लिए अपात्र घोषित करने की छूट भी रेलवे को दी गई है. देश के लगभग सभी विवाह व तलाक अधिनियमों में कुष्ठ को आधार बनाते हुए न केवल इसके आधार पर तलाक की व्यवस्था है, यहां तक कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 में तो कुष्ठ को आज भी ‘लाईलाज ’ बताने से भी गुरेज नहीं किया गया है. मानवाधिकार संगठन फोरम फॉर फैक्ट फाइंडिग डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी के सुभाष महापात्रा कहते हैं- “ पूरे देश में कुष्ठ रोगियों के साथ जिस तरह का भेदभाव बरता जा रहा है, उससे साफ समझ में आता है कि हमारा समाज अब भी कुष्ठ रोगियों के मामले में बेहद निर्मम है.” सुभाष का कहना है कि लगभग हरेक राज्य ने पंचायत और स्थानीय निकायों के क़ानून में भारी फेरबदल किए, लेकिन कुष्ठ का डर और कुष्ठ रोगियों के प्रति हिकारत की भावना ने कुष्ठ रोगियों को पंचायत चुनाव से बाहर रखे जाने के नियम को यथावत रहने दिया. सुभाष पंचायत और स्थानीय निकायों में कुष्ठ रोगियों के साथ बरते जा रहे भेदभाव के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ और उच्चतम न्यायालय में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं.

Thursday, March 26, 2009

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सूचना के अधिकार के कुछ जरुरी मार्ग दर्शक सवाल जबाब

1. मुझे सूचना कौन देगा? मैं आवेदन किसे जमा करूं?

सभी सरकारी विभागों के एक या एक से अधिक अधिकारियों को जन सूचना अधिकारी नियुक्त किया गया है। आपको अपना आवेदन उन्हें ही जमा करना है. यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वे आपके द्वारा मांगी गई सूचना विभाग की विभिन्न शाखाओं से इकट्ठा करके आप तक पहुंचाएं इसके अलावा बहुत से अधिकारी सहायक जन सूचना अधिकारी नियुक्त किए गए हैं. इनका काम सिर्फ़ जनता से आवेदन ले कर उसे संबंधित जन सूचना अधिकारी के पास पहुंचाना है.

2. मुझे जन सूचना अधिकारी के पते की जानकारी कैसे मिलेगी?

यह पता लगाने के बाद कि आपको किस विभाग से सूचना मांगनी है। जन सूचना अधिकारियों के विषय में जानकारी उसी विभाग से मांगी जा सकती है. पर यदि आप उस विभाग में नहीं जा पा रहे हैं या विभाग आपको जानकारी नहीं दे रहा तो आप अपना आवेदन इस पते पर भेज सकते है- जन सूचना अधिकारी, द्वारा - विभाग प्रमुख विभाग का नाम पता यह उस विभाग प्रमुख की ज़िम्मेदारी होगी कि इसे संबंधित जन सूचना अधिकारी के पास पहुंचाए. आप विभिन्न सरकारी वेबसाइटों से भी जन सूचना अधिकारी की सूची प्राप्त कर सकते हैं जैसे -http://rti.gov.in/

3. क्या कोई जन सूचना अधिकारी मेरा आवेदन यह कह कर अस्वीकार कर सकता है कि आवेदन या उसका कोई हिस्सा उससे संबंधित नहीं है?

नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता. अनुच्छेद 6(3) के अनुसार वह संबंधित विभाग के पास आपके आवेदन के भेजने और इसके बारे में आपके सूचित करने के लिए बाध्य है.

4. यदि किसी विभाग ने जन सूचना अधिकारी की

अपना आवेदन जन सूचना अधिकारी द्वारा विभाग प्रमुख के नाम से नियम शुल्क के साथ संबंधित सरकारी अधिकारी को भेज दें. आप अनुच्छेद 18 के तहत राज्य के सूचना आयोग से भी शिकायत कर सकते हैं. सूचना आयुक्त के पास ऐसे अधिकारी पर 25000 रूपये का जुर्माना लगाने का अधिकार है जिसने आपका आवेदन लेने से इनकार किया है. शिकायत करने के लिए आपको सिर्फ़ सूचना आयोग को एक साधारण पत्र लिखकर यह बताना है कि फलां विभाग ने अभी तक जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है और उस पर जुर्माना लगना चाहिए.

5. क्या जन सूचना अधिकारी मुझे सूचना देने से मना कर सकता है?

जन सूचना अधिकारी soochanaa ke adhikaar kaanoon ke anuchchhed 8 में बताए गए विषयों से संबंधित सूचनाएं देने से मना कर सकता है. इसमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचनाएं, सुरक्षा अनुमानों से संबंधित सूचनाएं, रणनीतिक, वैज्ञानिक या देश के आर्थिक हितों से जुड़े मामले, विधानमंडल के विषेशाधिकार हनन संबन्धी मामले से जुड़ी सूचना शामिल हैं. अधिनियम की दूसरी अनुसूची में ऐसी 18 एजेंसियों की सूची दी गई है जहां सूचना का अधिकार लागू नहीं होता है, फिर भी, यदि सूचना भ्रष्टाचार के आरोपों या मानवाधिकारों के हनन से जुड़ी हुई है तो इन विभागों को भी सूचना देनी पड़ेगी.

6. क्या इसके लिए कोई शुल्क भी लगेगा?

हां इसके लिए शुल्क निम्नवत है - आवेदन शुल्क - 10 रूपये सूचना देने का खर्च - 2 रू प्रति पृष्ठ दस्तावेजों की जांच करने का शुल्क - जांच के पहले घंटे का कोई शुल्क नहीं पर उसके बाद हर घंटे का पांच रूपये शुल्क देना होगा। यह शुल्क केंद्र कई राज्यों के लिए ।पर लिखे अनुसार है लेकिन कुछ राज्यों में यह इससे अलग है. इस बारे में विस्तार से जानकारी के लिए शुल्क नियमावली देखें

7.मैं शुल्क कैसे जमा कर सकता हूँ ?

आवेदन शुल्क के लिए हर राज्य की अपनी अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं. आम तौर पर आप अपना शुल्क निम्नलिखित तरीकों से जमा करा सकते हैं-

  • स्वयं नकद जमा करा के (इसकी रसीद लेना भूलें)
  • डिमांड ड्रफ्ट
  • भारतीय पोस्टल ऑर्डर से
  • मनी ऑर्डर से (कुछ राज्यों में लागू)
  • बैंकर्स चैक से
  • उपरोक्त सभी संबंधित जन अधिकारी के पक्ष में देय होने चाहिए.
  • कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए निश्चित खाते खोले हैं. आपको उस खाते में शुल्क जमा करना होता है. इसके लिए स्टेट बैंक की किसी भी शाखा में नकद जमा करके उसकी रसीद आवेदन के साथ नत्थी करनी होती है। या आप उस खाते के पक्ष में देय पोस्टल ऑर्डर या डीडी भी आवेदन के साथ संलग्न कर सकते हैं.
  • कुछ राज्यों में, आप आवेदन के साथ निर्धारित मूल्य का कोर्ट स्टैम्प भी लगा सकते हैं.

8. मैं अपना आवेदन कैसे जमा कर सकता हूँ?

आप व्यक्तिगत रूप से, स्वयं जन सूचना अधिकारी या सहायक जन सूचना अधिकारी के पास जाकर या किसी को भेजकर आवेदन जमा करा सकते हैं। आप इसे जन सूचना अधिकारी या सहायक जन सूचना अधिकारी के पते पर डाक द्वारा भी भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के सभी विभागों के लिए 629 डाकघरों को केंद्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी बनाया गया है. आप इनमें से किसी भी डाकघर में जाकर आवेदन और शुल्क जमा कर सकते हैं. वहां जाकर जब आप सूचना का अधिकार काउंटर पर आवेदन जमा करेंगे तो वे आपको रसीद और एक्नॉलेजमेंट देंगे और यह उस डाकघर की ज़िम्मेदारी है कि तय समय सीमा में आपका आवेदन उपयुक्त जन सूचना अधिकारी तक पहुंचाया जाए. इन डाकघरों की सूची http://www.indiapost.gov.in/rtimanual16a.html पर उपलब्ध है.

9. यदि जन सूचना अधिकारी या संबंधित विभाग मेरा आवेदन स्वीकार नहीं करता तो मुझे क्या करना चाहिए?

आप इसे पोस्ट द्वारा भेज सकते हैं। अधिनियम की धारा 18 के अनुसार आपको संबंधित सूचना आयोग में शिकायत भी करनी चाहिए. सूचना आयुक्त के पास उस अधिकारी के खिलाफ 25000रू तक जुर्माना लगाने का अधिकार है जिसने आपका आवेदन लेने से मना किया है. शिकायत में आपको सूचना आयुक्त को सिर्फ़ एक पत्र लिखना होता है, जिसमें आप आवेदन जमा करते समय पेश आने वाली परेशानियों के विषय में बताते हुए जन सूचना अधिकारी पर जुर्माना लगाने का निवेदन कर सकते हैं.

10. क्या सूचना प्राप्त करने की कोई समय सीमा है?

हां, यदि आपने जन सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा कर दिया है तो आपको हर हाल में 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आपने आवेदन सहायक जन सूचना अधिकारी के पास डाला है तो यह सीमा 35 दिनों की है. यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है तो सूचना 48 घंटों में उपलबध करायी जाती है.

10. क्या सूचना प्राप्त करने की कोई समय सीमा है?

हां, यदि आपने जन सूचना अधिकारी के पास आवेदन जमा कर दिया है तो आपको हर हाल में 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने आवेदन सहायक जन सूचना अधिकारी के पास डाला है तो यह सीमा 35 दिनों की है. यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है तो सूचना 48 घंटों में उपलबध करायी जाती है.

11. क्या मुझे सूचना मांगने की वजह बतानी होगी?

बिल्कुल नहीं. आपको कोई कारण या अपने कुछ ब्योरों (नाम, पता, फोन नं.) के अलावा कोई भी अतिरिक्त जानकारी नहीं देनी पड़ती है. धारा 6(2) में यह स्पष्ट उल्लेख है कि आवेदक से उसके संपर्क के लिए ज़रूरी जानकारी के अलावा कोई भी जानकारी नहीं मांगी जानी चाहिए.

12. देश में बहुत से असरदार कानून हैं पर उनमें से कोई काम नहीं करता? आपको इतना विश्वास क्यों है कि यह कानून काम करेगा?

यह कानून काम कर रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा कानून बना है जो अधिकारियों की लापरवाही पर तुरंत उनकी सीधी जवाबदेही तय कर देता है. यदि संबंधित अधिकारी आपको तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध नहीं कराता तो उसके बाद सूचना आयुक्त 250 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से उस पर जुर्माना लगा सकता है. यदि उपलब्ध कराई गई सूचना ग़लत है तो अधिकतम 25000 का जुर्माना लगाया जा सकता है. आपके आवेदन को फालतू बताकर जमा करने और अधूरी सूचना उपलब्ध कराने के लिए भी जुर्माना लगाया जा सकता है. यह जुर्माना अधिकारी की तनख्वाह से काटा जाता है.

13. क्या अभी तक किसी पर जुर्माना लगा है?

हां, केंद्र और राज्य सूचना आयुक्तों ने कुछ अधिकारियों पर जुर्माने लगाए हैं। महाराष्ट, मध्य प्रदेश कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली में कई अधिकारियों पर जुर्माना लगा है.

14. क्या जन सूचना अधिकारी पर लगा जुर्माना आवेदक को मिलता है?

नहीं. जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा होती है. हालांकि धारा 19 के अनुसार, आवेदक सूचना मिलने में हुई देरी के कारण हर्जाने की मांग कर सकता है.

15. यदि मुझे सूचना नहीं मिलती तो मुझे क्या करना चाहिए?

यदि आपको सूचना नहीं मिली या आप सूचना से असंतुष्ट है, तो आप अधिनियम की धारा 19(1) के तहत प्रथम अपील अधिकारी के पास प्रथम अपील डाल सकते हैं

16. प्रथम अपील अधिकारी कौन होता है?

हर सरकारी विभाग में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ पद के एक अधिकारी के प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है. सूचना मिलने या गलत मिलने पर पहली अपील इसी अधिकारी के पास की जाती है.

17. क्या प्रथम अपील के लिए कोई फॉर्म है?

नहीं, प्रथम अपील के लिए कोई फॉर्म नहीं है। (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने फॉर्म निर्धारित किये है) प्रथम अपील अधिकारी के पते पर आप सादे काग़ज़ पर आवेदन कर सकते हैं. सूचना के अधिकार के अपने आवेदन की एक प्रति तथा यदि लोक सूचना अधिकारी की ओर से आपके कोई जवाब मिला है तो उसकी प्रति अवश्य संलग्न करें.

18. क्या प्रथम अपील के लिए कोई शुल्क अदा करना पड़ता है?

नहीं, प्रथम अपील के लिए आपको कोई शुल्क अदा नहीं करना है, हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किया है, अधिक जानकारी के लिए कृप्या शुल्क नियमावली देखें।

19. कितने दिनों में मैं प्रथम अपील दाखिल कर सकता हूँ?

अधूरी या गलत सूचना प्राप्ति के 30 दिन के भीतर अथवा यदि कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई। है तो सूचना के अधिकार का आवेदन जमा करने के 60 दिन के भीतर आप प्रथम अपील दाखिल कर सकते हैं।

20. यदि प्रथम अपील दाखिल करने के बाद भी संतुष्टिदायक सूचना मिले?

यदि पहली अपील दाखिल करने के पश्चात भी आपके सूचना नहीं मिली है तब आप मामले को आगे बढ़ते हुए दूसरी अपील कर सकते हैं।

21. दूसरी अपील क्या है?

सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए दूसरी अपील करना, अन्तिम विकल्प है. दूसरी अपील आप सूचना आयोग में कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभाग के ख़िलाफ़ अपील दाखिल करने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग है. सभी राज्य सरकारों के विभागों के लिए लिए राज्यों में ही सूचना आयोग हैं.

22. दूसरी अपील के लिए क्या कोई फार्म सुनिश्चित है?

नहीं, दूसरी अपील दाखिल करने के लिए कोई फार्म सुनिश्चित नहीं है (लेकिन दूसरी अपील के लिए कुछ राज्य सरकारों के अपने निर्धारित फार्म भी है.) केंद्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग के पते पर आप साधारण कागज पर अपील के लिए आवेदन कर सकते हैं. दूसरी अपील दाखिल करने से पूर्व अपील के नियमों को सावधानी पूर्वक पड़े, यदि यह अपील के नियमों के अनुरूप नहीं होगा तो आपकी दूसरी अपील ख़ारिज़ की जा सकती है. राज्य सूचना आयोग में अपील करने के पूर्व राज्य के नियमों को ध्यान से पड़े।

23. दूसरी अपील के लिए मुझे कोई शुल्क अदा करना पड़ेगा?

नहीं, आपको कोई शुल्क नहीं देना है (हालांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किये हैं) अधिक जानकारी के लिए शुल्क नियामावली देखें

24. कितने दिनों में मैं दूसरी अपील दाखिल कर सकता हूँ?

पहली अपील करने के 90 दिनों के अन्दर अथवा पहली अपील के निर्णय आने की तारीख के 90 दिन के अन्दर आप दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं।

25. सूचना का अधिकार अधिनियम कब अस्तित्व में आया? यदि आप कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने इसे हाल ही में लागू किया है तब आप कैसे कह सकते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों ने इससे फायदा उठाया हैं?

सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 से अस्तित्व में आया इससे पूर्व यह 9 राज्यों में लागू था. ये राज्य हैं - जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट, तमिलनाडू, आसाम तथा गोवा. इनमें से कई राज्यों में यह पिछले 5 वर्षों से लागू था और बहुत अच्छा काम कर रहा था.

26. सूचना के अधिकार के दायरे में कौन कौन से विभाग आते हैं?

केंद्रीय सूचना का अधिकार अधिनियम जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है. ऐसे सभी निकाय जिनका गठन संविधान के तहत, या उसके अधीन किसी नियम के तहत, या सरकार की किसी अधिसूचना के तहत हुआ हो इसके दायरे में आते हैं. साथ ही साथ वे सभी इकाईया जो सरकार के स्वामित्व में हों, सरकार के द्वारा नियंत्रित हों अथवा सरकार के द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित हों.

27. आंशिक वित्त पोषित से क्या तात्पर्य है?

सूचना के अधिकार कानून या अन्य किसी कानून में (आंशिक रूप से वित्तपोषित) की स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। संभवत: यह इस कानून के इस्तेमाल से समय के साथ साथ स्वत: इससे संबन्धित मामलों में न्यायालय के फैसलों से स्पष्ट हो सकेगी.

29. क्या सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 सूचना के अधिकार के आड़े नहीं आता?

नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 22 के अंतर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम, सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 सहित किसी भी अधिनियम के ऊपर है. सूचना का अधिकार कानून बनने के बाद सिर्फ वही सूचना गोपनीय रखी जा सकती है जिसकी व्यवस्था इस अधिनियम की धारा 8 में की गई है, इसके अलावा किसी सूचना के किसी कानून के तहत गोपनीय नहीं कहा जा सकता.

30. यदि किसी मामले में सूचना का कुछ हिस्सा गोपनीय हो तो क्या शेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

हां, सूचना का अधिकार अधिनियम के धारा 10 के अंतर्गत, सूचना के उस भाग की प्राप्ति हो सकती है, जिसे धारा 8 के मुताबिक गोपनीय माना गया हो।

31. क्या फाइल नोटिंग की प्राप्ति निषेध है?

नहीं, फाइल नोटिंग सरकारी फाइलों का एक अहम भाग है और सूचना के अधिकार में इसे उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. यह केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा 31 जनवरी 2006 के एक आदेश में भी स्पष्ट किया गया है.

32. सूचना प्राप्ति के पश्चात् मुझे क्या करना चाहिए?

इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता। यह इस बात पर निर्भर होगा कि आपने किस प्रकार की सूचना की मांग की है और आपका मकसद क्या है. बहुत से मामलों में केवल सूचना मांगने भर से ही आपका मकसद हल हो जाता है. उदाहरण के लिए अपने आवेदन की स्थिति की जानकारी मांगने भर से ही आपका पासपोर्ट अथवा राशन कार्ड आपके मिल जाता है. बहुत से मामलों में सड़कों की मरम्मत पर पिछले कुछ महीनें में खर्च हुए पैसे का हिसाब मांगते ही सड़क की मरम्मत हो गई. इसलिए सूचना की मांग करना और सरकार से प्रश्न पूछना स्वयं एक महत्वपूर्ण कदम है. अनेक मामलों में यह स्वयं ही पूर्ण है. लेकिन अगर आपने सूचना का अधिकार का उपयोग करके भ्रष्टाचार तथा घपलें को उजागर किया है, तो आप सतर्कता विभाग, सीबीआई में सबूत के साथ शिकायत दर्ज कर सकते हैं अथवा एफ आई आर दर्ज करा सकते हैं. कई बार देखा जाता है कि शिकायत दर्ज कराने के बाद भी दोषियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही नहीं होती. सूचना के अधिकार के अंतर्गत आप सतर्कता एजेंसियों पर भी उनके पास दर्ज शिकायतें की स्थितियों की जानकारी मांग कर दबाव डाल सकते हैं. घपलें को मीडिया द्वारा भी उजागर किया जा सकता है, लेकिन दोषियों को सजा मिलने का अनुभव बहुत उत्साह जनक नहीं रहा है. फिर भी एक बात निश्चित है, इस प्रकार सूचना मांगने और दोषियों को बेनका़ब करने से भविष्य में सुधार होगा. यह अधिकारियों को एक स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्र के लोग सतर्क हो गये हैं और पहले की भांति किया गया कोई भी गलत कार्य अब छुपा नहीं रह सकेगा. इस प्रकार उनके पकड़े जाने का खतरा बड़ गया है.

33. क्या सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना मांगने और इस के माध्यम से भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वालों को परेशान किए जाने की भी संभावना है?

हां, कुछ ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसमें सूचना मांगने वालों को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया. ऐसा तब किया जाता है जब सूचना मांगने से बड़े स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा होने वाला हो. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि हर आवेदक को ऐसी धमकी का सामना करना पड़ेगा. सामान्यत: अपनी शिकायत की स्थिति जानने या फिर किसी दैनिक मामले के बारे में जानने के लिए आवेदन करने पर ऐसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है. ऐसा उन मामलों में हो सकता है जिनके सूचना मांगने से नौकरशाही और ठेकेदारों के बीच साठगांठ का पर्दाफाश हो सकता है या फिर किसी माफिया के गठजोड़ के बारे में पता चल सकता है.

34. फिर मैं सूचना के अधिकार का प्रयोग क्यों करूं?

पूरी व्यवस्था इतनी सड़ चुकी है कि यदि हम अकेले या साथ मिलकर इसे सुधारने की कोशिश नहीं करेंगें तो यह कभी ठीक नहीं होगी. और अगर हम कोशिश नहीं करेंगे तो और कौन करेगा? इसलिए हमें प्रयास तो करना ही होगा. लेकिन हमें एक योजना बना कर इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि कम से कम खतरों का सामना करना पड़े. अनुभव के साथ कुछ सुरक्षा और योजनाएं भी उपलब्ध हैं.

35. ये योजनाएं क्या हैं?

आप आगे आकर किसी भी मुद्दे पर सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगते हैं तो आवेदन करते ही आप पर कोई हमला नहीं करेगा. पहले तो वो आपको बहलाने या जीतने का प्रयास करेंगे. इसलिए जैसे ही आप कोई असुविधाजनक आवेदन डालेंगे कोई आपके पास आकर बड़ी विनम्रता से आवेदन वापस लेने के लिए कहेगा. आप उस आदमी की बातों से यह समझ सकते हैं कि वह कितना गंभीर है और वो क्या कर सकता है. अगर आपको मामला गंभीर लगता है तो अपने 10-15 परिचितं को उसी सार्वजनिक विभाग में वही सूचना मांगने के लिए तुरंत आवेदन करने के लिए कहें. ये और भी अच्छा होगा, अगर आपके मित्र देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. अब किसी को पूरे देश में फैले आपके 10-15 परिचितं को एक साथ नुकसान पहुंचाना बहुत मुश्किल होगा. देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले आपके दोस्त डाक के माध्यम से भी आवेदन डाल सकते हैं. इसको ज्यादा से ज्यादा प्रचार देने का प्रयास करें. इससे आपको सही सूचना भी मिल जायेगी और आपको कम से कम ख़्ातरों का सामना करना पड़ेगा.

36. क्या सूचना पाकर लोग सरकारी कर्मचारियों को ब्लैकमेल भी कर सकते हैं?

इसका जवाब जानने से पहले हम खुद से एक सवाल पूछें- सूचना का अधिकार क्या करता है? यह केवल सच्चाई को जनता के सामने लाता है. यह खुद कोई सूचना नहीं बनाता. यह केवल पर्दा हटाता है और सच्चाई को जनता को समक्ष लाता है. क्या यह गलत है? इसका दुरूपयोग कब हो सकता है. तभी जब किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया है और उसकी सूचना जनता के सामने आने में पकड़े जाने का खतरा हो. सरकार के भीतर चल रही गड़बड़ी अगर जनता के सामने आती है तो इसमें गलत ही क्या है. इसका सामने आना जरूरी है या इसको छुपाया जाना. हां, जब ऐसी कोई सूचना किसी के द्वारा प्राप्त की जाती है तो वह उस अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है. पर हम गलत अधिकारियों की रक्षा क्यों करें. यदि किसी अधिकारी को ब्लैकमेल किया जा रहा है तो वह भारतीय, दंड संहिता के तहत ब्लैकमेल के खिलाफ एफ.आइ.आर. कराने के लिए स्वतंत्र है. अधिकारी को ऐसा करने दीजिए. फिर भी हम आवेदन द्वारा मांगी गई सारी सूचना को वेबसाइट पर डालकर किसी के द्वारा किसी को करने ब्लैकमेल की संभावना को दूर कर सकते हैं. आवेदक उस स्थिति में अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है जब सिर्फ आवेदक को ही सूचना मिली हो और वह उसे आम करने की धमकी दे रहा हो. पर जब सभी जानकारियां वेबसाइट पर डाल दी जाएंगी तो ब्लैकमेल करने की संभावना अपने आप खत्म हो जाएगी.

37. क्या सरकार के पास सूचना के लिए आवेदनों का ढेर लग जाने से सामान्य सरकारी कामकाज प्रभावित नहीं होगा?

ये डर निराधार है. दुनिया में 68 देशों में सूचना का अधिकार सफलतापूर्वक चल रहा है. संसद में इस कानून के पास होने से पहले ही देश के नौ राज्यों में यह कानून लागू था. इनमें से किसी राज्य सरकार के पास आवेदनों का ढेर नहीं लगा. ये निराधार बातें उन लोगों के दिमाग की उपज है जिनके पास करने को कुछ नहीं है और वे पूरी तरह निठल्ले हैं. आवेदन जमा करने की कार्यवाही में बहुत समय, उर्जा और कई तरह के संसाधन खर्च होते हैं. जब तक किसी को वाकई सूचना की जरूरत हो तब तक वह आवेदन नहीं करता. आइए, कुछ आंकड़ों पर गौर करें. दिल्ली में 60 से ज्यादा महीनों में 120 विभागों में 14000 आवेदन किए गये हैं. इसका मतलब हर महीने हर विभाग में औसत 2 से भी कम आवेदन. क्या ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार के पास आवेदनों के ढेर लग गये होंगे? आपको यह सुनकार आश्चर्य होगा कि अमेरीकी सरकार ने 2003-04 के दौरान सूचना के अधिकार के तहत 3.2 मिलियन आवेदन स्वीकार किये हैं. यह स्थिति तब है जब भारत के विपरीत वहां ज्यादातर सरकारी सूचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और वहां लोगों को आवेदन करने की उतनी जरूरत नहीं है.

38. कानून को लागू करने के लिए क्या बहुत ज्यादा धन की जरूरत नहीं होगी?

अधिनियम को लागू करने के लिए जो भी पैसा लगेगा वह एक फायदे का सौदा होगा. अमेरिका समेत बहुत से देशों ने इसे समझ लिया है और वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने के लिए बहुत से संसाधन प्रयोग कर रहें हैं. पहली बात तो यह है कि अधिनियम में खर्च सारी राशि सरकार भ्रष्टाचार और दुव्र्यवस्था में कमी आने के कारण उसी साल वसूल कर लेती है. उदाहरण के लिए इस बात के ठोस सबूत मिले हैं कि राजस्थान में सूखा राहत कार्यक्रमों और दिल्ली में सार्वजनिक वितरण प्रणाली कार्यक्रमों में गड़बड़ी को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रयोग से बहुत हद तक कम किया गया है. दूसरी बात यह है कि सूचना का अधिकार. लोकतंत्र के लिए बहुत ज़रूरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का हिस्सा है. सरकार में जनता की भागीदारी होने के लिए यह जरूरी है कि पहले जनता यह जाने कि क्या हो रहा है. तो जिस तरह हम अपनी संसद को चलने के लिए सारे खर्चों को ज़रूरी मानते हैं, सूचना का अधिकार अधिनियम को लागू करने के लिए भी सारे खर्चों को जरूरी मानना होगा.

39. लोगों को बेतुके आवेदन करने से कैसे रोका जा सकता है?

कोई भी आवेदन बेतुका नहीं होता।किसी के लिए पानी का कनेक्शन उसके लिए सबसे बडी समस्या हो सकती है पर अधिकारी इसे बेतुका मान सकते है.नौकरशाही में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों की ओर से बेतुके आवेदन का प्रश्न उठाया गया है. सूचना का अधिकार अधिनियम किसी भी आवेदन को निरर्थक मानकर अस्वीकृत करने का अधिकार नहीं देता. नौकरशाहों का एक वर्ग चाहता है कि जन सूचना अधिकारी को यह अधिकार दिया जाये कि यदि वह आवेदन को बेतुका समझे तो उसे अस्वीकर कर दे. यदि ऐसा होता है तो हर जन सूचना अधिकारी हर आवेदन को बेतुका बता कर अस्वीकार कर देगा. यह अधिनियम के लिए बहुत बुरी स्थिति होगी.

40. क्या फाइलों पर लिखी जानेवाली टिप्पणियां सार्वजनिक करने से ईमानदार अधिकारी अपनी बेबाक राय लिखने से नहीं बचेंगे?

यह गलत है. बल्कि सच तो यह है कि हर अधिकारी जब ये जानेगा कि वह जो भी फाइल में लिख रहा है वह जनता द्वारा जांचा जा सकता है तो उस पर जनहित से जुड़ी चीजे लिखने का दबाव होगा. कुछ ईमानदार अधिकारियों ने यह स्वीकार किया है कि सूचना का अधिकार अधिनियम ने उन्हें राजनीतिक और अन्य कई तरह के दबावों से मुक्त होने में मदद की है. अब वे सीधे कह सकते हैं कि वे गलत काम नहीं करेंगे क्योंकि यदि किसी ने सूचना मांग ली तो घपले का पर्दाफाश हो सकता है. अधिकारियों ने अपने वरिष्ठों से लिखित में आदेश मांगना शुरू भी कर दिया है. सरकार फाइल नोटिंग को अधिनियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखने की कोशिश करती रही है. इन कारणों को देखते हुए फाइल नोटिंग दिखाने को अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में बने रहना बहुत जरूरी है.

41. प्रशासनिक अधिकारियों को बहुत से दबावों के अंदर फैसले लेने पड़ते हैं और जनता यह नहीं समझती?

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, यह ऊनके दबावों को कम करेगा।

42. क्या जटिल और वृहद जानकारियां मांगने वाले आवेदनों को अस्वीकार कर देना चाहिए?

यदि किसी को कोई सूचना चाहिए जो कि एक लाख पृष्ठों में समा रही है तो वह सूचना तभी मांगेगा जब उसे वाकई उसकी जरूरत होगी क्योंकि 2 रूपये प्रति पृष्ठ के हिसाब से उसे 2 लाख रू का भुगतान करना होगा। यह एक पहले से ही मौजूद बाधा है. यदि आवेदन सिर्फ इस आधार पर रद्द किए जाएंगे तो आवेदक 100 पृष्ठों की सूचनाएं मांगने वाले 1000 आवेदन डाल सकता है, जिससे किसी को भी कोई फायदा नहीं पहुघ्चने वाला इसलिए आवेदन इस आधार पर अस्वीकृत नहीं किए जा सकते.

43. क्या लोगों को सिर्फ अपने से जुड़ी सूचना मांगनी चाहिए. उन्हें सरकार के उन विभागों से जुड़ी सूचनाएं नहीं मांगनी चाहिए जिसका उनसे कोई संबंध नहीं है?

अधिनियम की धारा 6(2) में स्पष्ट कहा गया है कि आवेदक से सूचना मांगने का कारण नहीं पूछा जाएगा। सूचना का अधिकार अधिनियम इस तथ्य पर आधारित है कि जनता टैक्स देती है और इसलिए उसे जानने का हक है कि उसका पैसा कहां खर्च हो रहा है और उसका सरकारी तंत्र कैसा चल रहा है। इसलिए जनता को सरकार के हर पक्ष से सब कुछ जानने का अधिकार है. चाहे मुद्दा उससे प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हो या जुड़ा हो. इसलिए दिल्ली में भी रहने वाला कोई व्यक्ति तमिलनाडू से जुड़ी कोई भी सूचना मांग सकता है.

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